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________________ अभी बाज़ार गया है, वह आज शाम को आएगा। 5. कथय, ह्यः तेन किं किं कृतं, कथं च दिनं गतम् इति-बता, कल उसने क्या-क्या किया और दिन कैसे बीता ? शब्द ज्वलसि-(तू) जलता है। ज्वलामि-जलता हूँ। जल्पति-(वह) बोलता है। जल्पसि-(तू) बोलता है। जल्पामि-बोलता हूँ। योग्य-लायक। दीपशलाकापेटिका-दियासलाई की डिब्बी। दीपशलाका-दियासलाई। ज्वलिष्यति-(वह) जलेगा। ज्वलिष्यसि-(तू) जलेगा। ज्वलिष्यामि-जलूँगा। जल्पिष्यति-(वह) बोलेगा। जल्पिष्यसि-(तू) बोलेगा। जल्पिष्यामि-बोलूँगा। गाढः-घना। प्रज्वालय-जला। वाक्य 1. तत्र अग्निः ज्वलति, अतः तत्र त्वं न गच्छ-वहाँ आग जलती है, इसलिए तू वहाँ न जा। 2. सः एवं वृथा जल्पति, तत् न श्रोतुं योग्यम् अस्ति-वह इस प्रकार व्यर्थ बोलता है, वह सुनने योग्य नहीं। 3. इदानीं रात्रिः आगता, गाढः अन्धकारः भविष्यति, अतः प्रदीपंप्रज्वालयिष्यामि-अब रात्रि आ गई, घना अंधेरा हो जाएगा, इसलिए दिया जलाऊँगा। 4. तेन अग्निशलाका-पेटिका कुत्र रक्षिता इति न जानामि-उसने दियासलाई की डिब्बी कहाँ रखी, मुझे पता नहीं। 5. तत्र मञ्चके दीपशलाका अस्ति। तां गृहीत्वा दीप प्रज्वालय शीघ्रं च अत्र आनय-वहाँ मेज़ पर दियासलाई है। उसे लेकर दिया जला, और जल्दी यहाँ ले आ। शब्द निर्मितः-बनाया। चोरयति-(वह) चुराता है। चोरयसि-(तू) चुराता है। चोरयामि-चुराता हूँ। चोरयिष्यति-(वह) चुराएगा। चोरयिष्यसि-(तू) चुराएगा। चोरयिष्यामि-चुराऊँगा। अपहृता-चुराई। चपेटिका-चपत। कटः-चटाई। शिक्यम्-छिक्का। पुच्छम्-पूँछ, दुम। व्रश्चनः-चाकू। वाक्य 1. त्वं तं कटं कुत्र नयसि-तू उस चटाई को कहाँ ले जाता है ? 150] 2. अहं तं स्वगृहं नयामि-मैं उसे अपने घर ले जाता हूँ।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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