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________________ 4. चतुर्थी वारिणे जल के लिए 5. पञ्चमी वारिणः जल से 6. षष्ठी वारिणः जल का 7. सप्तमी वारिणि जल में सम्बोधन (हे) वारि (हे) जल इस प्रकार सब इकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप होते हैं। वाक्य 1. मनुष्यस्य देहे प्रथमं घ्राणम् इन्द्रियम्, येन गन्धः गृह्यते-मनुष्य के शरीर में पहली इन्द्रिय नाक (है), जिससे गंध लिया जाता है। 2. द्वितीयं चक्षुः येन मनुष्यः सर्वं पश्यति-दूसरी आँख, जिससे मनुष्य सब कुछ देखता है। 3. तृतीयं श्रोत्रम्, येन शब्दः श्रूयते-तीसरी कान, जिससे शब्द सुना जाता है। 4. चतुर्थम् इन्द्रियम् जिहा, यया अन्नस्य रसः गृह्यते-चौथी इन्द्रिय ज़बान, जिससे ___ अन्न का रस लिया जाता है। 5. पंचमम् इन्द्रियं त्वक्, यया मनुष्यः स्पर्श जानाति-पाँचवीं इन्द्रिय चमड़ी है, जिससे मनुष्य स्पर्श जानता है। 6. एतत् इन्द्रियपञ्चकं सर्वस्य ज्ञानस्य मूलम्-यह इन्द्रियंपञ्चक (पाँच इन्द्रियाँ) ___ सब ज्ञान की जड़ हैं। 7. हे बालक ! त्वं किं करोषि-हे बालक ! तू क्या करता है ? 8. त्वम् कदापि असत्यं मा वद। असत्यभाषणं पापं वर्तते-तू झूठ न बोल। झूठ ___ बोलना पाप है। 9. यः असत्यं वदति कः अपितस्य विश्वासं न करोति-जो झूठ बोलता है, कोई उसका विश्वास नहीं करता। 10. यदि कः अपि बालकः असत्यम् वदति तर्हि गुरुः तं ताडयति-अगर कोई बालक झूठ बोलता है, तो गुरु उसको मारता है। 11. यः सत्यं वदति तस्य सर्वजनः विश्वासं करोति-जो सच बोलता है, उसका सब लोग विश्वास करते हैं। 12. त्वं सदा सत्यं वद, सत्यभाषणं पुण्यं वर्तते-तू सदा सच बोल, सच बोलना पुण्य है। 13. यदा बालकः सत्यं वदति तदा गुरुः तं नैवं ताडयति-जब बालक सच बोलता है, तब गुरु उसको नहीं मारता। 14. अतः कदापि असत्यं न वक्तव्यम्, परन्तु सदैव सत्यं वक्तव्यम्-इसलिए कभी 117
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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