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विरक्ति का चिंतन काम अथवा कामना के पीछे वही व्यक्ति दौड़ता है जिसकी बुद्धि समीचीन नहीं होती। कामना की तीन प्रकृतियां हैं। जब तक उसकी प्राप्ति नहीं होती तब तक वह संताप (तनाव) पैदा करती है। उसकी प्राप्ति होने पर अतृप्ति बढ़ जाती है, तृप्ति की अनुभूति नहीं होती। उसका उपभोग करते-करते चेतना मूर्च्छित हो जाती है। उसका परित्याग करना कठिन होता है।
आरम्भे तापकान् प्राप्तौ-अतृप्तिप्रतिपादकान्। अन्ते सुदुस्त्यजान् कामान् कामं कः सेचते सुधीः ।।
इष्टोपदेश १७ .
१८ मार्च २००६