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मन की एकाग्रता और शरीर की स्थिरता
तुमने (भगवान संभव ने) निर्मल ध्यान किया, किसी एक वस्तु पर दृष्टि को टिका मन को मेरु के समान अडोल बना लिया।
तुम शारीरिक चपलता को छोड़कर जगत् से उदासीन हो गये। स्थिर चित्त से धर्म और शुक्ल ध्यान को धारण कर उपशम रस में लीन बन गए। संभव साहिब समरियै, ध्यायो है जिन निर्मल ध्यान के। एक पुद्गल दृष्टि थांप नै, कीधो है मन मेर समान कै॥ तन-चंचलता मेट नैं, हआ है जग थी उदासीन कै। धर्म शुकल थिर चित धरै, उपशम रस में होय रह्या लीन कै॥
चौबीसी ३.१,२
१३ मार्च २००६