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धर्म का दूसरा द्वार
मुक्ति धर्म का दूसरा द्वार है ।
भंते! मुक्ति (निर्लोभता) से जीव क्या प्राप्त करता है ? मुक्ति से जीव अकिंचनता को प्राप्त होता है। अकिंचन जीव अर्थ-लोलुप पुरुषों के द्वारा अप्रार्थनीय होता है-उसके पास कोई याचना नहीं करता ।
मुत्तीए णं भंते! जीवे किं जणयइ ?
मुत्तीणं अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ||
१ मार्च
२००६
फटफटक
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उत्तरज्झयणाणि २६.४