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शरीरप्रेक्षा (६) चित्त को काम-वासना से मुक्त करने का एक आलंबन है-संधि-दर्शन-शरीर की संधियों (जोड़ों) का स्वरूप-दर्शन कर उसके यथार्थ रूप को समझना; शरीर अस्थियों का ढांचामात्र है; उसे देखकर उससे विरक्त होना। शरीर में एक सौ अस्सी संधियां मानी जाती हैं। चौदह महासंधियां हैं-तीन दाएं हाथ की संधियां-कंधा, कुहनी, पहुंचा। तीन बाएं हाथ की संधियां। तीन दाएं पैर की संधियां-कमर, घुटना, गुल्फ। तीन बाएं पैर की संधियां। एक गर्दन की संधि। एक कमर की संधि।
पुरुष मरणधर्मा मनुष्य के शरीर की संधि को जानकर कामासक्ति से मुक्त हो सकता है।
संधिं विदित्ता इह मचिएहिं।
आयारो २.१२७
१२ दिसम्बर
२००६
FORGADADRAPARI. 4-3७२
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