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शरीरप्रेक्षा (२)
चित्त को काम-वासना से मुक्त करने का एक आलंबन है— लोक दर्शन |
लोक का अर्थ है-भोग्य वस्तु या विषय। शरीर भोग्य वस्तु है। उसके तीन भाग हैं
१. अधोभाग - नाभि से नीचे,
२. ऊर्ध्वभाग - नाभि से ऊपर,
३. तिर्यग् भाग - नाभि - स्थान ।
प्रकारान्तर से उसके तीन भाग ये हैं
१. अधोभाग–आंख का गड्ढा, गले का गड्ढा, मुख के बीच
का भाग ।
२. ऊर्ध्वभाग – घुटना, छाती, ललाट, उभरे हुए भाग । ३. तिर्यग्भाग–समतल भाग ।
दीर्घदर्शी पुरुष लोकदर्शी होता है। वह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्ध्वभाग को जानता है और तिरछे भाग को जानता है।
आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ड भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ ।
८ दिसम्बर
२००६
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आयारो २.१२५