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योग का अधिकारी
अपुनर्बन्धक, सम्यक्दृष्टियुक्त और सम्यक् चारित्री योग के अधिकारी होते हैं। योग का अधिकार सबको समान रूप से प्राप्त नहीं होता। उसका आधार है कर्मप्रकृति की निर्वृत्तिक्षयोपशम । वह अनेक प्रकार का होता है। इसीलिए योग का अधिकारी भी अनेक प्रकार का हो जाता है।
जिसका भवराग (भौतिक जीवन और भौतिक पदार्थों के प्रति आकर्षण) अधिक होता है, वह योग का अधिकारी नहीं होता ।
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अहिगारी पुण एत्थं विण्णेओ अपुणबंधगाइ त्ति । तह तह णियत्तपगईअहिगारो णेगभेओ त्ति ॥ अणियत्ते पुण तीए एगंतेणेव हंदि अहिगारे । तप्परतंतो भवरागओ दढं अणहिगारि त्ति ।।
योगशतक ६, १०
११ जनवरी
२००६
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