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कायोत्सर्ग का उद्देश्य कायोत्सर्ग का मुख्य उद्देश्य है आत्मा का शरीर से वियोजन। शरीर के साथ आत्मा का जो संयोग है, उसका मूल है प्रवृत्ति। जो इनका विसंयोग चाहता है अर्थात् आत्मा के सान्निध्य में रहना चाहता है, वह स्थान, मौन और ध्यान के द्वारा 'स्व' का व्युत्सर्ग करता है।
स्थान–काया की प्रवृत्ति का स्थिरीकरण-काय-गुप्ति। मौन-वाणी की प्रवृत्ति का स्थिरीकरण वाक्-गुप्ति। ध्यान-मन की प्रवृत्ति का एकाग्रीकरण-मनो-गुप्ति।
कायोत्सर्ग में श्वासोच्छ्वास जैसी सूक्ष्म प्रवृत्ति होती है, शेष प्रवृत्ति का निरोध किया जाता है।
कायस्य शरीरस्य स्थानमौनध्यानक्रियाव्यतिरेकेण अन्यत्र उच्छ्वसितादिभ्यः क्रियान्तराध्यासमधिकृत्य य उत्सर्गस्त्यागो 'णमो अरहताणं' इति वचनात् प्राक् स कायोत्सर्गः।
योगशास्त्र, प्रकाश ३, पत्र २५०
२६ सितम्बर २००६