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धर्म्यध्यान की चार अनुप्रेक्षा धर्म्यध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं१. एकत्व अनुप्रेक्षा–अकेलेपन का चिंतन करना।
२. अनित्य अनुप्रेक्षा–पदार्थों की अनित्यता का चिंतन करना।
३. अशरण अनुप्रेक्षा–अशरण दशा का चिंतन करना। ४. संसार अनुप्रेक्षा–संसार परिभ्रमण का चिंतन करना।
धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-एगाणुप्पेहा, अणिचाणुप्पेहा, असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा।
ठाणं ४.६८
१६ सितम्बर २००६