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धर्म्यध्यान : विपाक विचय (१) धर्म्यध्यान का तीसरा ध्येय विषय है कर्म-विपाक।
कर्म के चार प्रकार हैं-१. प्रकृति, २. स्थिति, ३. अनुभाग तथा ४. प्रदेश। वह शुभ और अशुभ दो रूपों में विभक्त है। मनयोग, वचनयोग और काययोग से उसका बंध होता है। इस प्रकार कर्म को ध्येय बनाकर चित्त की एकाग्रता करना विपाक विचय है।
पयइ-ठिइ-पएसाऽणुमावभिन्नं सुहासुहविहत्तं। जोगाणुभावजणियं कम्मविवागं विचिंतेज्जा।
झाणज्झयणं ५१
१४ सितम्बर २००६