________________
धर्म्यध्यान : अपाय विचय (१) __ जो मनुष्य राग, द्वेष, कषाय, आश्रव तथा प्राणातिपात आदि क्रियाओं में जी रहे हैं, वे एहलौकिक और पारलौकिक, दोनों प्रकार के अपायों को निमंत्रण दे रहे हैं।
राग, द्वेष और कषाय के द्वारा क्या-क्या अपाय होते हैं, इस विषय में दत्तचित्त होना और अपायों की खोज करना।
दुःख और दुःख के कारणों की खोज करना। रागबोसकसायाऽऽसवादिकिरियासु वट्टमाणाणं। इह-परलोयावाओ झाइज्जा वज्जपरिवज्जी।।
झाणज्झयणं ५०
११ सितम्बर २००६
FARPRADGADGANDGADCARRIAG(२५०-
MBEDERABAD-BG..