SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'ह' का ध्यान जो दूज के चन्द्रमा की कला के समान आकारवाला सूक्ष्म और सूर्य के समान भास्वर है, चारों दिशाओं में घूम रहा है, उस 'ह' वर्ण का चिंतन करें। क्रमशः वह सूक्ष्म हो रहा है, इस पर ध्यान केन्द्रित करें। कुछ क्षणों बाद देखें कि वह अव्यक्त हो रहा है। वर्ण दिखाई नहीं दे रहा है, केवल ज्योति दिखाई दे रही है। ___यह लक्ष्य से अलक्ष्य की ओर जाने का प्रयोग है। इससे आंतरिक चेतना का विकास होता है। निशाकर-कलाकारं, सूक्ष्म भास्करभास्वरम् । अनाहताभिधं देवं, विस्फुरन्तं विचिन्तयेत्।। तदेवं च क्रमात्, सूक्ष्मं ध्यायेद् बालाग्रसन्निभम्। क्षणमव्यक्तमीक्षेत, जगज्ज्योतिर्मयं ततः ।। प्रच्याव्यमानसंलक्ष्याद् अलक्ष्ये दधतः स्थिरम्। ज्योतिरक्षयमत्यक्षम्, अन्तरुन्मीलति क्रमात्।। इति लक्ष्यं समालम्ब्य लक्ष्याभावः प्रकाशितः । निषण्णमनसस्तत्र, सिद्धध्यत्यभिमतं मुनेः ।। योगशास्त्र ८.२५-२८ १० अगस्त २००६
SR No.032412
Book TitleJain Yogki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
PublisherJain Vishva Bharati Prakashan
Publication Year2007
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy