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________________ तन्मय ध्यान (१) परिणमन का सिद्धांत सार्वभौम है। प्रतिक्षण द्रव्य में परिणमन होता रहता है। यह किसी निमित्त या कारण के बिना अपने आप बदलता रहता है। यह अनादि परिणमन का सिद्धांत है। कुछ परिणमन समयावधि के साथ होते हैं। उनकी संज्ञा है सादि परिणमन। इसके द्वारा वस्तु को नया आकार मिलता है। ध्यान का सिद्धांत है आत्मा का जिस भाव से परिणमन होता है वह उसी रूप में बदल जाता है-तन्मय हो जाता है। अर्हत् का ध्यान करने वाला स्वयं अर्हत् में परिणत हो जाता है। परिणमते येनाऽऽत्मा भावेन स तेन तन्मयो भवति। अर्हद्ध्यानाऽऽविष्टो भावार्हन् स्यात्स्वयं तस्मात्।। तत्त्वानुशासन १६० ३० जुलाई २००६ .........................(२३७GADAHADGADGADGOGADGAL
SR No.032412
Book TitleJain Yogki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
PublisherJain Vishva Bharati Prakashan
Publication Year2007
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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