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योग (४) योग के दो अंग हैं१. शोधन २. निरोध
पहली भूमिका है शोधन। जैसे-जैसे शोधन होता है वैसेवैसे निरोध की शक्ति बढ़ती जाती है। आगम की भाषा में शोधन का तात्पर्य है निर्जरा और निरोध का तात्पर्य है संवर।
शोधन का हेतु है तप, सत् प्रवृत्ति अथवा शुभ योग। जो साधक अशुभ प्रवृत्ति का अल्पीकरण कर शुभ प्रवृत्ति का दीर्धीकरण करता है वह सहज ही निवृत्ति अथवा निरोध की भूमिका में चला जाता है।
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शोधनं च।
मनोनुशासनम् १.१३
४ जनवरी २००६