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ध्यान की योग्यता : चारित्र भावना
ध्यान के लिए परिणामशुद्धि की आवश्यकता है। अशुद्धि का हेतु है कर्म। पुराने कर्म संचित रहते हैं और नए-नए कर्मों का ग्रहण होता रहता है। इस अवस्था में परिणाम की शुद्धि नहीं होती। अशुद्ध अवस्था में मन का विक्षेप होता है, चंचलता बढ़ती है। __ चारित्र का अभ्यास परिणामशुद्धि का निर्माण करता है, मानसिक चंचलता कम हो जाती है और साधक में धर्म्यध्यान की योग्यता बढ़ जाती है।
नवकम्माणायाणं पोराणविणिज्जरं सुभायाणं। चारित्तभावणाए झाणमयत्तेण य समेइ।।
झाणज्झयणं ३३
२१ जुलाई २००६
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