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ध्यान की योग्यता : ज्ञान भावना ज्ञान भावना के अभ्यास के लिए चार सूत्र निर्दिष्ट हैं
१. मनोधारण–श्रुतज्ञान में मन का सम्यक् नियोजन करना। इसका फलितार्थ है-स्वाध्याय। वह ध्यान का प्रमुख साधन है।
२. विशुद्धि-भावशुद्धि का अभ्यास। इसका फलितार्थ है सकारात्मक चिंतन और सकारात्मक भाव।
३. सार का चिंतन-जीव, अजीव आदि द्रव्यों और पर्यायों के विषय में चिंतन करना।
४. निश्चल मति–मानसिक चंचलता से मुक्त रहना।
णाणे णिचन्भासो कुणइ मणोधारणं विसुद्धिं च। नाण गुणमुणियसारो तो झाइ सुनिचलमईओ।।
__ झाणज्झयणं ३१
१६ जुलाई २००६