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ध्यान की दिशा
जैसे ध्यान की सिद्धि के लिए स्थान और आसन का निर्धारण आवश्यक है वैसे ही दिशा का निर्धारण भी आवश्यक है। ध्यान करने वाले साधक का मुख दो दिशाओं में होना चाहिए
१. पूर्व दिशा २. उत्तर दिशा
स्थानासनविधानानि ध्यानसिद्धेर्निबन्धनम्। नैकं मुक्त्वा मुनेः साक्षाद्विक्षेपरहितं मनः ।। पूर्वाशाभिमुखः साक्षादुत्तराभिमुखोऽपि वा। प्रसन्नवदनो ध्याता ध्यानकाले प्रशस्यते॥
ज्ञानार्णव २८.२०,२३
१४ जुलाई २००६
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