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कल कल कल कल कल कल कल
कल कल कलम
कलाक
ध्यान की पृष्ठभूमि इन्द्रियों का संयम नहीं किया, चित्त की चंचलता को सीमित करने की साधना नहीं की, निर्वेद (वैराग्य अथवा अनासक्त भाव) उपलब्ध नहीं हुआ और अपनी आत्मा को कष्ट-सहिष्णुता से भावित नहीं किया, फिर भी तुम मोक्ष पाने की इच्छा रखते हो और उसके लिए ध्यान की साधना करते हो! सोचो, क्या तुम अपने आपको ठग नहीं रहे हो? इहलोक और परलोक, दोनों की श्रेष्ठता से वंचित नहीं हो रहे हो?
तात्पर्य की भाषा यह है कि यदि तुम मोक्ष की अभिलाषा करते हो और उसके लिए ध्यान की साधना करते हो, तो इन्द्रियों पर संयम, चंचलता का निरोध, वैराग्य और कष्टसहिष्णुता का अभ्यास करना जरूरी है।
इन्द्रियाणि न गुप्तानि नाभ्यस्तश्चित्तनिर्जयः । न निर्वेदः कृतो मित्र नात्मा दुःखेन भावितः ।। एवमेवापवर्गाय प्रवृत्तैर्ध्यानसाधने। स्वमेव वञ्चितं मूढैर्लोकद्वयपथच्युतैः ।।
ज्ञानार्णव २०.२१,२२
२५ जून २००६