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औदासीन्य (२) "हस्तामलकवत्' यह न्याय बहुत प्रसिद्ध है। एक आदमी आंवले को हथेली में लेकर दिखा सकता है, किन्तु परम तत्त्व को हथेली में लेकर नहीं दिखा सकता। औरों की क्या बात! स्वयं गुरु भी परम तत्त्व को हथेली में लेकर नहीं दिखा सकते। जो योगी औदासीन्य की साधना करता है, उसके सामने परम तत्त्व स्वयं प्रकाशित हो जाता है।
यदिदं तदिति न वक्तुं, साक्षाद् गुरुणाऽपि हन्त! शक्येत्। औदासीन्यपरस्य, प्रकाशते तत् स्वयं तत्त्वम् ।।
योगशास्त्र १२.२१
२३ जून २००६