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कलाकात कर
कलकल कलकल कलर कलकल कलकल कारक
वीतराग चेतना इन्द्रिय और मन के विषय रागी मनुष्य के लिए दुःख के हेतु होते हैं। वे वीतराग के लिए कभी किंचित् भी दुःखदायी नहीं
होते।
___ काम-भोग समता के हेतु भी नहीं होते और विकार के हेतु भी नहीं होते। जो पुरुष उनके प्रति द्वेष या राग करता है, वह तद्विषयक मोह के कारण विकार को प्राप्त होता है।
एविंदियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो। ते चेव थोवं वि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स करेंति किंचि।। न कामभोगा समयं उति, न यावि भोगा विगई उर्वति। जे तप्पओसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उवेइ।।
__ उत्तरज्झयणाणि ३२.१००,१०१
१ जून २००६
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