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इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता इन्द्रिय का काम है विषय का ग्रहण। विषय-ग्रहण के पश्चात् दो क्रियाएं होती हैं
१. प्रिय विषय के प्रति राग २. अप्रिय विषय के प्रति द्वेष प्रतिसंलीनता के दो कार्य हैं१. निरोध २. निग्रह
निरोध का तात्पर्य है इन्द्रिय-विषयों को ग्रहण नहीं करना। निग्रह का तात्पर्य है इन्द्रियों द्वारा गृहीत विषयों में राग और द्वेष नहीं करना।
इंदियपडिसंलीणया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियविसयप्पयारनिरोहो वा सोइंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, चक्खिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा चक्खिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोससनिग्गहो वा, घाणिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा घाणिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, जिभिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा जिभिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, फासिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा फासिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा।
ओवाइयं ३७
१६ मई २००६
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