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प्राणायाम (१) ____ जैन योग में प्राणायाम का महत्त्व सापेक्ष है। प्राचीन जैन योग में संभवतः रेचक, पूरक और कुंभक की व्यवस्था नहीं है। इसका आधार महर्षि पतंजलि के योगदर्शन में खोजा जा सकता है। योगदर्शन में प्राणायाम की परिभाषा है प्राण का प्रच्छर्दनरेचन और विधारण-बाह्य कुंभक।
उत्तरकालीन जैन योग में रेचक, पूरक और कुंभक का उल्लेख मिलता है।
प्राणायामो गतिच्छेदः, श्वासप्रश्वासयोर्मतः । रेचकः पूरकश्चैव, कुम्भकश्चेति स त्रिधा।।
योगशास्त्र ५.४
६ मई २००६
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