SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिग् परिमाण व्रत अणुव्रतों को स्वीकार करने वाला गृहस्थ ऊंची, नीची, तिरछी दिशाओं में स्वीकृत सीमा से बाहर जाने व हिंसा आदि के आचरण का प्रत्याख्यान करता है । वह दिग्व्रत की सुरक्षा के लिए निम्न निर्दिष्ट अतिक्रमणों से बचता है 00000 १. ऊंची, नीची, तिरछी दिशा के परिमाण का अतिक्रमण करना । २. एक दिशा का परिमाण घटाकर दूसरी दिशा के परिमाण का अतिक्रमण करना । ३. दिशा के परिमाण की विस्मृति होना । वह अपने राष्ट्र से बाहर जाकर राजनीति में हस्तक्षेप और जासूसी नहीं करता। स्थानीय जनता के हितों को कुचलने वाला व्यावसायिक विस्तार नहीं करता और बिना टिकिट या पारपत्र के यात्रा नहीं करता । G १५ अप्रैल २००६ १२८ २२२५ DGDG
SR No.032412
Book TitleJain Yogki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
PublisherJain Vishva Bharati Prakashan
Publication Year2007
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy