SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अखण्ड आत्मा आत्मज्ञान (१) आत्मज्ञान (२) आत्मशक्ति आत्मा का अनुचिंतन आत्मा का स्वरूप अध्यात्म अध्यात्म का आलोक कर्म के दो बीज : राग-द्वेष राग-द्वेष की उपशांति के उपाय दुःख का मूल कारण काम है दुःख का मूल धर्म का पहला द्वार धर्म का दूसरा द्वार धर्म का तीसरा द्वार धर्म का चौथा द्वार द्रष्टा ज्ञायक भाव (१) ज्ञायक भाव (२) ज्ञाता-द्रष्टा भाव (१) ज्ञाता-द्रष्टा भाव (२) रंग सहित तीर्थंकर का ध्यान मानसिक दुःख की चिकित्सा समत्व की साधना (१) समत्व की साधना (२) मन की एकाग्रता और शरीर की स्थिरता ६७ ६८ ६६ ७० ७१ ७२ ७३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ ७६ το ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ ८६ ६० ६१ ६२ DG १० गुण-संक्रमण रूपान्तरण चेतना का रूपान्तरण प्रसन्नता का शिखर विरक्ति का चिंतन भाव (१) भाव (२) भाव (३) ज्ञानयोग 5000 DGDG ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ हह १०० १०१ • संवरयोग आश्रव और संवर (१) १०५ आश्रव और संवर (२) १०६ आश्रव और संवर (३) १०७ आश्रव और संवर (४) १०८ मिथ्यात्व १०६ अविरति ११० प्रमाद १११ कषाय ११२ संवरयोग : तपोयोग ११३ संवरयोग : ध्यान-योग ११४ संवरयोग ११५ कर्मयोग और ज्ञानयोग ११६ सम्यक्त्व ११७ सम्यक् दर्शन ११८ सम्यक्त्व और चारित्र ११६ अहिंसा : प्राणातिपात विरमण (१) १२० अहिंसा : प्राणातिपात विरमण (२) १२१ D GOD
SR No.032412
Book TitleJain Yogki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
PublisherJain Vishva Bharati Prakashan
Publication Year2007
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy