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आश्रव और संवर (१) द्वार खुला रहता है तो मकान में हवा का प्रवेश होता है। हवा भीतर आती है तो उसके साथ धूल भी आ सकती है। मनुष्य प्रवृत्ति करता है, उसके पीछे दो कषाय-राग और द्वेष काम करते हैं। राग-द्वेष की उपस्थिति में कर्मबंधन की अनिवार्यता है।
द्वार खुला है, पवन भी आ सकती है धूल। युगल कषाय प्रवृत्ति का, यही बन्ध का मूल।।
अध्यात्म पदावली ४४
२३ मार्च २००६