________________
पाठ ८ : काल ३ ( भविष्यत् काल )
शब्दसंग्रह
भूआ ।
( याता )
लडकी ।
पितृ (पिता) बाप । वप्तृ ( वप्ता) बाप | मातृ (माता) मां । भ्रातृ (भ्राता) भाई । स्वसृ ( स्वसा ) बहिन | पितृष्वसृ ( पितृष्वसा ) न ( नप्ता) पोता । भर्तृ ( भर्ता ) पति । देवृ (देवा) देवर । यातृ देवरानी जेठानी । ननान्दृ ( ननान्दा ) ननंद | दुहितृ ( दुहिता) जामातृ (जामाता) जमाई | मातृष्वसृ ( मातृष्वसा ) मौसी । सवितृ सूर्य । त्वष्टृ ( त्वष्टा) बढई । अग्रज : ( बडा भाई ) । अनुज: ( छोटा भाई ) । जनक: (बाप) । पितामहः ( दादा ) । प्रपितामहः (परदादा ) । मातामहः (नाना ) । प्रमातामह: ( परनाना ) । पितृव्यः (चाचा) । पितृव्यपुत्रः ( चचेरा भाई ) । सहोदर : ( सगा भाई ) । भ्रातृव्यः (भतीजा) ।
सविता )
हृन् – हरणे (हरति, हरते ) हरण करना । भृंन् — भरणे ( भरति, भरते) भरना । धृन् -- धारणे ( धरति, धरते ) धारण करना । डुकुंन्—करणे ( करोति, कुरुते ) करना ।
अव्यय - श्वस् ( आनेवाला कल ), ओम् ( स्वीकार करना ), अथ (इसके बाद), अकस्मात् ( अचानक ), अग्रतः (आगे), इव ( तरह) । कर्तृ और पितृ शब्दों को याद करो
(देखें परिशिष्ट १ संख्या ६, ५)
कृ धातु और हृ धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ६,१० ) । घृ के रूप हृ की तरह चलेंगे ।
(
भविष्यत्काल
1
आगे होने वाले काल को भविष्यत्काल कहते हैं भविष्यत्काल में चार विभक्तियों का प्रयोग होता है
(१) क्यादादि (२) तादि (३) स्यत्यादि ( ४ ) स्यदादि ।
क्यादादि - इसका प्रयोग आशीर्वाद देने के अर्थ में होता है । जैसे— त्वं पंडित भूयाः - तुम पंडित होवो |
भवान् चिरंजीवो भूयात् -- आप चिरंजीवी हों ।
त्वं विद्वान् भूयाः - तुम विद्वान् होवो !
भवान् श्रमणो भूयात् - आप श्रमण बनो ।
सा विदुषी भूयात् - वह विदुषी बने । सीता भावितात्मा भूयात् - सीता भावितात्मा बने ।