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________________ परिशिष्ट २ षिधुंच् षिवुच् बुंक बुंन्त् षुहच् षूङ्क् षूच् षेवृङ् षोंच् ष्ट्यें ष्णिहूच् ष्णें ष्मिङ् ष्वपंक् विदांच् संराद्धौ तन्तुसन्ताने प्रसवैश्वर्ययो: सपर समर सर्ज सान्त्वण् अभिषवे तृप्तौ ष्टिधित् आस्कंदने ष्टिमच् आर्द्राभावे टीमच् आर्द्राभावे ष्टुंन्क् ष्टुभिङ् ष्ठगे ष्ठां ष्ठिवुच् ष्णांक् प्राणिप्रसवे सेवने तृप्त होना प्राणिगर्भविमोचने जन्म देना अन्तकर्मणि संघाते च स्तुतौ स्तम्भे संवरणे गतिनिवृत निरसने शौचे प्रीतौ वेष्टने ईषद् शये गात्रप्रक्षरणे पूजायाम् युद्धे अर्ज सामप्रयोगे तैयार होना सीना, बुनना उत्पन्न होना, ऐश्वर्य होना साधं त् संसिद्धौ गीला करना, मथना x सं प्रसव करना सेवा करना विनाश करना इकट्ठा करना, शब्द करना: आक्रमण करना भीगना भीगना स्तुति करना क्रिया का रुकना ढांकना सं ठहरना थूकना स्नान करना प्रेम करना वीटना थोडा हंसना सोना पसीने से लथपथ होना पूजा करना युद्ध करना अर्जन करना शांत करना, प्रिय वचन कहना फलप्राप्ति होना सं वि सं सं वि ४०५,५२६,५५२,५८८ सं ४ε२,५३४,५५४ ४६२,५२०,५५०,५८८ सं X X सं सं ५३६,५५५ ५३०, ५५३ X ५३०,५५३ वि ३४४,५२८, ५५२,५८८ X ५१८,५४८ X _५२४,५५१ वि ३२८,५८८ सं सं X X ४६२,५८८ ४६२,५३०,५५३, ५८८ ३६८, ५२४,५५२,५८८ ५३६,५५५,५८८ ४६२ सं X ४६२,५८८ ४६२ सं वि ३६६ X ३१७ ४६२, ५३०, ५५३ ४६२ ४६२, ५३२,५५४,५८८ ४६२ ४६२,५१६,५४८, ५८८ ५३०, ५५३ ४६२ ४६२ ४६२ ५८८ सं ४६२, ५३६,५५५,५८८
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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