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________________ परिशिष्ट २ ३११ मृषन्च वड मेधा तितिक्षायां हिंसायाम् प्रतिदाने आशुग्रहणे मोचने अभ्यासे मर्दने गतौ मोक्षण म्नां 4. म्रदषङ Zचु म्लुचु गतो म्लेच्छण यजंन् FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE: अव्यक्ते शब्दे हर्षक्षये देवपूजासंगति- करणदानेषु प्रयत्ने संकोचने यती यत्रिण यभं मैथुने सहन करना ५३४,५५५,५७८ हिंसा करना सं ४८२ वापिस देना सं ४८२,५१६,५४८ शीघ्र ग्रहण करना सं ४८२ फेंकना सं ४८२,५७८ अभ्यास करना सं ४८२,५०८,५४६,५७८ मर्दन करना सं ४८२ जाना सं ४८२ जाना सं ४८२ अस्पष्ट शब्द करना सं ४८२ थकना, मुरझाना सं ४८२ देवपूजा करना, वि ३६२,५२४,५५१,५७८ संगति करना, देना प्रयत्न करना सं ४८४,५१६,५४६,५७८ संकुचित होना सं ४८४ संभोग करना सं ४८४ निवृत्त होना सं ४८४,५१२,५४७,५८० प्रयत्न करना सं ४८४,५३२,५५४,५८० जाना वि ३३७,५२४,५५१,५८० याचना करना सं ४८४,५२०,५५०,५८० बांधना सं ४८४,५८० मिलाना सं ४८४ समाधि में होना सं ४८४,५३४,५५४,५८० मिश्रण करना सं ४८४ जोडना वि ४३७,५४२,५५७,५८० लडना, युद्ध करना वि ४२३,५३४,५५५,५८० रक्षा करना सं ४८४,५१४,५४८,५८० जाना सं ४७४ बनाना वि ४६०,५८० राग करना वि ३५४,४८४,५८० शब्द करना सं ४८४ जाना x ५१०,५४६ कुरेदना सं ४८४ प्रारंभ करना सं ४८४,५०२,५८० यांक याचन उपरमे प्रयत्ने गतौ याञ्चायाम् बन्धने मिश्रणे समाधी संपर्चने योगे संप्रहारे पालने गतौ प्रतियत्ने रागे शब्दे गती विलेखने राभस्ये युजंच् युजण् युजन युधंच् रक्ष रघिङ् रचण् रजंन्च . रण
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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