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________________ परिशिष्ट २ ३०५ दमुच् 4. दम्भुत म्भ दयङ दरिद्राक दल दलण् द दांन्क दांपक दांम् दांन्न् उपशमे शांत होना सं ४७४,५७० दम्भे धोखा देना सं ४७४,५३६,५५५,५७० दानगतिहिंसा- देना, जाना, हिंसा सं ४७४,५१८,५५०,५७० दहनेषु च करना, जलाना, रक्षा करना दुर्गतौ दरिद्र होना सं ४७४,५२६ विश रणे सडना सं ४७४,५१२,५४७,५७० विदारणे फाडना सं ४७४ भस्मीकरणे जलाना वि ३८०,५१४,५४८,५७० दाने देना वि ३५०,५०५,५७० काटना सं ४७४,५५२ देना सं ४७४,५०८,५४६ अवखण्डने तोडना x ५२२,५५० क्रीडाविजिगीषा रमण करना, जीतना वि ४१६,५२८,५५३,५७० व्यवहारद्युति व्यवहार करना, जुआ स्तुतिमोद मद खेलना, स्तुति करना, स्वप्न कान्ति प्रसन्न होना, मद करना गतिषु स्वप्न लेना, दीप्त होना, जाना दाने दान देना वि ४१६,४७४,५३८,५५५, लवने दाने दिवच् FFEEEEEEEEEEEEEE दिशन्ज् ५७० दिहंन्क् दीक्षङ् सं सं ४७६,५२८,५५२,५७० ४७६,५२०,५५०,५७० क्षये दीच् दीपीच् दुत् दुःखण् दुषंच् . दुहंन्क उपचये लेप करना मौण्डयेज्योपनयन दीक्षित होना नियमव्रतादेशेषु क्षय होना दीप्तौ चमकना गतौ जाना उपतापे दुःखित होना तक्रियायां दुःखित होना वैकृत्ये बिगडना क्षरणे दुहना परितापे दुःखित होना आदरे आदर करना प्रेक्षणे देखना x ५३४,५५४ सं ४७६,५३४,५५५,५७० वि ३२३ सं ४७६,५७० सं ४७६ सं ४७६,५७० वि ३४७,५२८,५५२,५७२ सं ४७६,५३४,५५४,५७२ x ५७२ वि ३३४,५७२ दूच् दृ
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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