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________________ क्त, क्तवतु प्रत्यय २४५ और एक वचन ही रहता है। गत्यर्थक आदि धातुओं से क्त प्रत्यय कर्ता में होता है । क्रिया का रूप कर्ता के अनुसार चलता है, कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है । जैसे—स ग्रामं गतः । ___ क्त प्रत्ययान्त शब्द जब विशेषण बनता है वहां उसके रूप पुल्लिग में जिन की तरह, स्त्रीलिंग में सीता की तरह और नपुंसकलिंग में रत्न की तरह चलते हैं। नियम ६३५- (नपुंसके भावे क्त: ६।१।१) नपुंसकलिङ्ग में भाव अर्थ में धातु से क्त प्रत्यय होता है । हसितं छात्रस्य । व्याहृतं रजन्याः ।। नियम ६३६- (गत्यर्थाकर्मकपिबभुजेः ५।१११) भूत आदि अर्थ में होने वाला क्त प्रत्यय गति अर्थ वाली धातुओं, अकर्मक धातुओं तथा पिब, भुज् धातुओं से कर्ता में विकल्प से होता है। दर्शनः ग्रामं गतः, दर्शनेन ग्राम: गतः, गतं दर्शनेन । आसितो भवान् । आसितं भवता । पयः पीता: गावः । पयः गोभिःपीतम् । अन्नं भुक्तास्ते । इदं ते (क्तम् । __ नियम ६३७– (श्लिषशीङ्स्थासवसजनरुहभजज भ्यः ५।१।१०) श्लिष्, शीङ्, स्था, आस्, वस्, जन्, रुह, भज्, ज, इन धातुओं से क्त प्रत्यय कर्ता में विकल्प से होता है । आश्लिष्ट: पिता पुत्रम् । आश्लिष्टा पुत्री पित्रा। अतिशयितो गुरुं शिष्यः । अतिशयितो गुरुः शिष्येण । उपस्थितो गुरुं शिष्यः । उपस्थितो गुरु: शिष्येण । उपासितो गुरुं शिष्यः । उपासितो गुरुः शिष्येण । उपासितं शिष्येण । अनूषितो गुरुं भवान् । अनूषितो गुरु र्भवता। अनूषितं भवता । अनुजातो माणवको माणविकाम् । अनुजाता माणविका माणवकेन । अनुजातं माणवकेन। आरूढो वृक्षं भवान् । आरूढो वृक्षो भवता । आरूढं भवता। विभक्ता भ्रातरो रिक्थम् । विभक्तं भ्रातृभिः रिक्थम् । विभक्तं भ्रातृभिः । अनुजीर्णो वृषली चैत्रः । (अनुप्राप्य जीर्णं इत्यर्थः) । अनुजीर्णा वृषली चैत्रेण । क्तवतु प्रत्यय क्तवतु प्रत्यय भूतकाल में होता है । यह सब धातुओं से होता है इसका तवत् रूप शेष रहता है। यह कर्ता में होता है। इसके योग में कर्ता में प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है । पुल्लिग में इसके रूप भवत् शब्द की तरह, स्त्रीलिंग में ईप लगने के बाद नदी की तरह और नपुंसकलिंग में जगत् की तरह रूप चलते हैं । क्तवतु के रूप बनाने का सरल उपाय है कि क्त प्रत्यय के रूप के आगे वत् शब्द जोड दें। नीचे लिखे नियमों को ध्यान मे पढ़ें नियम ६३८-- (उवर्णात् ४।३।८७) उवर्ण अंतवाली, एक स्वरवाली धातु से क् इत् जाने वाले प्रत्यय परे हो तो इट नहीं होता है । यु–युतः,
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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