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________________ पाठ ६६ : य, क्यप् प्रत्यय शब्दसंग्रह स्थेयम् (ष्ठां) ठहरना चाहिए। हेयम् (ओहांक्) छोडना चाहिए । देयम् (दा) देना चाहिए । ध्येयम् (ध्य) चिंतन करना चाहिए। पेयम् (पा) पीना चाहिए । गेयम् (गें) गाना चाहिए । चेयम् (चि) चुनना चाहिए। जेयम् (जि) जीतना चाहिए । नेयम् (णी) ले जाना चाहिए । भव्यम् (भू) होना चाहिए । श्रव्यम् (श्रु) सुनना चाहिए । लव्यम् (लू) काटना चाहिए । तप्यम् (तप्) तपना चाहिए । लभ्यम् (लभ) प्राप्त करना चाहिए । गम्यम् (गम्) जाना चाहिए। तक्यम् (तक्) हंसना चाहिए । चत्यम् (चत्) मांगना चाहिए । यत्यम् (यतीङ्) प्रयत्ल करना चाहिए । शस्यम् (शस्) हिंसा करनी चाहिए । सह्यम् (सह.) सहना करना चाहिए। गद्यम् (गद्) बोलना चाहिए । मद्यम् (मदीच्) हर्षित होना चाहिए। यम्यम् (यमु) रोकना चाहिए । उद्यम् (वद्) बोलना चाहिए। क्यप् प्रत्यय के रूप प्रावृत्यः (प्रा+वृ) ढकना चाहिए । अधीत्यः (अधि+इ) पढना चाहिए। आदृत्यः (आ+ दृ) आदर करना चाहिए । जुष्यः (जुष्) सेवा करनी चाहिए। शिष्यः (शास्) शासन करना चाहिए । स्तुत्यः (ष्टु) स्तुति करना चाहिए। वृत्यम् (वृ) होना चाहिए । वृध्यम् (वृध्) बढना चाहिए । गृध्यम् (गृध्) गृद्ध होना चाहिए । भृत्यः (9) भरना चाहिए । कृत्यम् (कृ) करना चाहिए। मृज्यम् (मृज्) साफ करना चाहिए । दुह्यम् (दुह्) दुहना चाहिए । जप्यम् (जप्) जप करना चाहिए। गुह्यम् (गुह.) छिपाना चाहिए। य और क्यप् प्रत्यय य और क्यप् प्रत्यय कृत्य संज्ञा के अन्तर्गत हैं । तव्य और अनीय की तरह ये भी अकर्मक धातुओं से भाव में और सकर्मक धातुओं से कर्म में होते हैं। तव्य और अनीय सब धातुओं से होता है। ये दोनों प्रत्यय कुछेक धातुओं से होते हैं। क्यप् प्रत्यय में क और प इत् जाते हैं, य प्रत्यय शेष रहता है। दोनों य प्रत्यय होने पर भी रूपों में अन्तर पडता है । क्यप् प्रत्यय में प् इत् जाने से (ह्रस्वस्य पित् कृति तुक्) सूत्र से ह्रस्व धातुओं को तुक (त) का आगम हो जाता है और रूपों में भिन्नता आ जाती है।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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