SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विभक्त्यर्थ प्रक्रिया (२) शास्त्रान्तं गच्छेत् । यदि गुरुन् उपासिष्यते शास्त्रान्तं गमिष्यति । नियम ५८४ - ( शक्तार्हयोः कृत्यश्च ४|४|१०६ ) शक्तः ( समर्थ : ), अर्हः (योग्यः) । शक्त और अर्ह यदि कर्ता हो तो धातु से कृत्य ( तव्यादि ) प्रत्यय और बादि विभक्ति होती है । भवता खलु भारो वोढव्यः, वहनीयः, ह्या ह्येत । ( भवान् भारं वहेत्) । २२१ नियम ५८५ - ( द्यादि मङि ४|४|११० ) माङ् उपपद में हो तो द्यादि विभक्ति होती है । माङ्योगे तु न – इससे द्यादि में अट् नहीं होता । मा भूत् । मा कार्षीद् धर्मम् । नियम ५८६ - ( सस्मे दिवादिश्च ४|४|१११) मा के साथ स्म शब्द उपपद में हो तो द्यादि और दिवादि विभक्त होती है । मा चैत्र स्म हार्षी: परद्रव्यम् । मा चैत्र स्म हरः परद्रव्यम् । मा स्म करोत् मा स्म कार्षीत् । प्रयोगवाक्य किं त्वं गुरुणा सह वार्तामकार्षीः ? ननुकरोमि । किं भवान् पुरा वति ? रमा कहि गच्छति, गन्ता, गमिष्यति वा । मनोहरः कदा पठिष्यति, एष पठति । यदि सः पठेत् उत्तीर्णतां गच्छेत् । विनीतेन ज्ञानं प्राप्यं प्राप्तव्यं, प्रापणीयं वा । कस्मैचित् कूष्माण्डः, गृञ्जनं श्वेतकन्दश्च रोचते, कस्मैचिन्च कारवेल्लः, पटोल:, पनसं च । महेन्द्रः रक्ताङ्ग पालकीं च न अत्ति । संस्कृत में अनुवाद करो राजेन्द्र के पिताजी आलू और मूली नहीं खाते । रमेश को टमाटर और सलाद अच्छा लगता है । आज बाजार में टिंडा, लौकी, कद्दू, शलगम, पालक, तोरई, परवल, करौंदा आदि सब्जियां आई हैं । कई लोग गोभी, भिंडी और मटर नहीं खाते । करेला कडवा होता है । कटहल पौष्टिक होता है । इमली का खट्टापन प्रसिद्ध है । ककडी खारी क्यों बनती है ? विभक्त्यर्थ का प्रयोग करो क्या तुमने आचार्यश्री की सेवा की थी ? हां की थी। क्या तुम नगर में पहले जाओगे ? हां जाऊंगा । तुम कब पढोगे, अभी पढता हूं । मोहन कब जायेगा ? श्याम कहां जाएगा ? यदि मदन पिता के पास रहता तो धन पा लेता । साध्वियों को पढना चाहिए। तुम वहां मत जाओ। तुम ऐसा मत बोलो । अभ्यास १. हिंदी में अनुवाद करो— कारवेल्लः स्वास्थ्यप्रदो भवति । मम ग्रामं समया गुञ्जनशा कटं, जालिनीशाकिनं, कर्कटीशाकटं च विद्यन्ते । शिशवे तिन्तिडीकं न रोचते । कदा अत्स्यति भवान् एप अत्ति । किं सा पुरा गायति ?
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy