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________________ २१२ वाक्यरचना बोध अकर्मक हो तो आत्मनेपद हो जाती है। भोजनकाले उपतिष्ठते । अन्यत्र राजानं उपतिष्ठति । नियम ५४६-(आङ् स्पर्धायाम् ३।३।४०) आ उपसर्गपूर्वक ह्वयति धातु स्पर्धा के अर्थ में आत्मनेपद हो जाती है । मल्लो मल्लं आह्वयते । अन्यत्र गोपालः गां आह्वयति । नियम ५५०- (वे: स्वार्थे ३।३।४६) वि उपसर्गपूर्वक क्रम् धातु स्वार्थ में आत्मनेपद हो जाती है । गजो विक्र मते। नियम ५५१-(प्रोपादारंभे ३।३।५०) प्र उपसर्गपूर्वक क्रम् धातु आरंभ अर्थ में आत्मनेपद हो जाती है। भोक्तुं प्रक्रमते, भोक्तुं उपक्रमते (प्रारंभ करता है) । अन्यत्र प्रक्रामति (जाता है)। नियम ५५२- (अनुपसर्गाद् वा ३।३।५१) उपसर्ग रहित क्रम् धातु विकल्प से आत्मनेपद होती है। क्रमते, कामति । नियम ५५३- (अमुपसर्गाद् ज्ञः ३।३।८६) उपसर्गरहित ज्ञा धातु फलवति अर्थ में हो तो आत्मनेपद हो जाती है । गां जानीते । अन्यत्र परस्य गां जानाति । नियम ५५४--(अवाद् गिरः ३।३।५४) अव उपसर्गपूर्वक गिर् धातु आत्मनेपद हो जाती है। अवगिरते । नियम ५५५-(उपाद्यमः स्वीकारे ३।३।५८) उप उपसर्गपूर्वक यम् धातु स्वीकार अर्थ में आत्मनेपद हो जाती है । कन्यां उपयच्छते वरः । नियम ५५६- (समः क्ष्णुवः ३।३।६८) सं उपसर्गपूर्वक क्ष्णु धातु आत्मनेपद हो जाती है । संक्ष्णुते शस्त्रम् ।। नियम ५५७-(समो गमृच्छिप्रच्छिस्वरतिश्रुविदतिदृशः ३।३१७६) सं उपसर्गपूर्वक अकर्मक गम् आदि धातुएं आत्मनेपद हो जाती हैं। संगच्छते, संमृच्छते, संपृच्छते, संस्वरते, संशृणुते, संवित्ते, समृच्छते, समियते, संपश्यते । नियम ५५८-(अनोरकर्मकात् ३।३।७३) अनु उपसर्गपूर्वक वद् धातु अकर्मक हो तो आत्मनेपद हो जाती है। अनुवदते आचार्यस्य शिष्यः । अन्यत्र उक्तं अनुवदति । नियम ५५६ (व्युदस्तप: ३।३।७८) वि, उत् उपसर्गपूर्वक तप् धातु आत्मनेपद हो जाती है। वितपते, उत्तपते वा रविः। . नियम ५६०- (व्यक्तवाचां सहोक्तौ ३।३।७१) मनुष्य आदि एक साथ स्पष्ट बोले तो वद् धातु आत्मनेपद हो जाती है। संप्रवदन्ते ग्राम्याः । संप्रवदन्ति कुक्कुटाः (व्यक्त वाणी नहीं) । चैत्रः वदति (सहोक्ति नहीं है)। प्रयोगवाक्य माता पुत्रं शपते । शिष्यः गुरुमुपतिष्ठति । गोपालः गां जानीते । भूपः
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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