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________________ पाठ ५५ : जिन्नन्त २ शब्दसंग्रह (मिन्नतरूप) तापयति (तप्) तपवाता है । लापयति (लप्), जल्पयति (जल्प) कहलवाता है। जापयति (जप्) जप करवाता है । जेमयति (जिमु) जिमवाता है । भोजन करवाता है । दर्शयति (दश) दिखवाता है । दाहयति (दह) जलवाता है । क्रापयति (क्री) खरीदवाता है। अध्यापयति (अधि+ इ) पढवाता है। चापयति, चाययति (चि) चुनवाता है। अर्पयति (ऋ) प्राप्त करवाता है । ह्र पयति (ह्रींक्) लजवाता है, लज्जा करवाता है । वाययति (वें) सिलवाता है। दूषयति (दूष्) दूषित करवाता है। सेवयति (सेव् ) सेवा करवाता है। आदयति (अद्), जक्षयति (जश्) खिलवाता है। भोजयति (भुञ्ज) खिलवाता है। ग्राहयति (ग्रह.) ग्रहण करवाता है। त्रोटयति (त्रुट) तुडवाता है। विलीनयति, विलाययति (वि+ली) पिघलवाता है। गण की धातुओं से जिन्नन्त के रूप बनाने का नियम जिन्नन्त में ज् इत् जाता है। (वृद्धिस्वराणामाणिति तद्धिते ८।४।१) इस सूत्र से आदि स्वर को वृद्धि हो जाती है। वृद्धि होने पर संध्यक्षर स्वर (ए,ऐ,ओ,औ) को कहीं पर आ हो जाता है, कहीं पर अय्, आय, अव और आव् हो जाता है। जि का इ मिलाने से इकारान्त धातु बन जाती है। नियम ४८८-(जिक्रीडां नौ ४।२।१०६) जि, क्री, इङ्-इनके संध्यक्षर को आ हो जाता है । जापयति, कापयति, अध्यापयति । नियम ४८६-(चिस्फुरो वा ४।२।१११) चिनत् धातु के संध्यक्षर को आ विकल्प से होता है । चापयति, चाययति । स्फारयति, स्फोरयति । नियम ४६०-(अतिहीलीरीक्नूयिक्ष्माय्यातां पुक् ४।२।११३) ऋक्-गतो, ऋप्रापणे वा (अति), ह्री, व्ली, री (रीयति, रिणाति), नूयि, क्ष्मा और आदन्त धातुओं को पुक् (प) का आगम होता है। ऋ-अर्पयति, अरारयति, ह्र पयति, क्लेपयति, रेपयति, क्नोपयति, क्ष्मापयति, दापयति, जापयति । नियम ४६१- (शाछासाह्वाव्यावेपां युक् ४।२।११४) शा आदि धातुओं को युक् (य) का आगम होता है । शोंच्–शाययति । छोंच-छाय
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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