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________________ पाठ ५२ : तद्धित १५ (ईषदसमाप्त, अभूततद्भाव आदि) शब्दसंग्रह गंजः (अनाज की मंडी)। यंत्रगृहम् (कोल्हुघर)। कूटागारम् (क्लब)। संधानी (धातु पिघलाने का कारखाना)। निषद्या (मंडी)। वपनी, खरकुटी (नाई की दुकान) । हट्टतालम् (हडताल) । कच्छपः (शराब का कारखाना) । भूमिपालः (जागीरदार) । पटराज्ञी, महिषी (पटरानी) । राजद्रोहः, विप्लव: (बगावत)। महाराज्ञी (बडी रानी)। राजाधिराजः (शहंशाह) । सामंतः (बडा जमींदार)। धातु-चुरण-स्तेये (चोरयति) चुराना। पूजण्—पूजायाम् (पूजयति) पूजा करना । पलण्-रक्षणे (पालयति) रक्षा करना। स्निहण्स्नेहने (स्नेहयति) स्नेह करना । मन्त्रल-गुप्तभाषणे (मन्त्रयते) मन्त्रणा करना। स्पृहण्-ईप्सायाम् (स्पृहयति) चाहना। मार्गण-अन्वेषणे (मार्गयति) खोजना। हिसिण्–हिंसायाम् (हिंसयति) हिंसा करना । रचण्–प्रतियत्ने (रचयति) बनाना। चुर् और पूजण् धातु के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट २ संख्या ५०,१२५) । पलण से लेकर रचण् धातु के रूप दिबादि तक चुर् की तरह चलते हैं। शेष रूप परिशिष्ट में देखें (संख्या १२६ से १३२ तक)। ईषद् असमाप्त, अभूततद्भाव नियम ४७२-(त्यादेश्च प्रशंसायां रूपः ८।२।६) तिप आदि अंत वाले धातु के रूप और नाम से प्रशंसा के अर्थ में रूप प्रत्यय आता है । जैसेकलाकाररूप:-यह कुशल कलाकार है। पठतिरूपं-बहुत अच्छा पढता है । जिस शब्द के आगे रूप प्रत्यय लगाएंगे वह पुल्लिग है तो रूपः, स्त्रीलिंग है तो रूपा, नपुंसकलिंग है तो रूपं बनेगा। पठति आदि क्रिया के आगे नपुंसकलिंग का एक वचन 'रूपं' ही रहेगा। नियम ४७३-(पाशः क्षेपे ८।२।११) निंदा के अर्थ में पाश प्रत्यय होता है । जैसे—कलाकारपाशः । वैयाकरणपाशः । याज्ञिकपाशः । कुत्सिता कुमारी-कुमारपाशा । स्त्रीप्रत्यय पुंवत् हो जाता है। नियम ४७४- (प्रकृते मयट ८।२।१५) जिस वस्तु के निष्पन्न में
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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