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________________ पाठ ४२ : तद्धित (५) शेषाधिकार शब्दसंग्रह आयः (आमदनी)। उद्धारः, ऋणम् (उधार)। धारकः (किरायेदार) । संवित् (ठेका) । कृतसंवित् (ठेकेदार) । अस्तोकः (थोक) । ग्राहकजीवी (दलाल) । प्रतिनिध्यम् (दलाली)। टंकम् (नकद) । प्रतिरूपम् (नमूना) । ख्यापना, ज्ञापना (नोटिस) । गोणी (बोरा, बोरी) वृद्धिः (ब्याज) । अर्घः (मूल्य) । विनिमयदलम् (हुंडी)। धातु-ईडक्-स्तुतौ (ईट्टे) स्तुति करना। आसङ्क्-उपवेशने (आस्ते) बैठना । चक्ष–व्यक्तायां वाचि (आचष्टे) बोलना। ईड्, आस् और चक्ष् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ८६,२६,६०)। शेष अर्थ (जात, भव, क्रीत, कुशल आदि) __ शेष अर्थ में अनेक अर्थ हैं। उनमें जात, भव, क्रीत कुशल आदि प्रमुख हैं। इनमें एक-एक अर्थ में भी प्रत्यय होते हैं। शेष अर्थ में जो प्रत्यय होते हैं वे इन सारे अर्थों में होते हैं। जहां जो अर्थ उपयुक्त बैठता हो वहां वह लगा लेना चाहिए। नियम २६८-(राष्ट्रादियः ६।४।२) राष्ट्र शब्द से शेष अर्थ में इय प्रत्यय होता है । राष्ट्र जातः, भवः, क्रीतः कुशलो वा राष्ट्रियः । नियम २६९-(पारावारेभ्य ईनः ६१४१३) पार, अवार, पारावार, अवारपार इनसे शेष अर्थ में ईन प्रत्यय होता है। पारीणः, अवारीणः, पारावारीणः, अवारपारीणः । नियम २७०-(धुप्रागपागुदक्प्रतीचो यः ६।४।४) दिव, प्राच, अपाच्, उदच, प्रत्यच् इन शब्दों से शेष अर्थ में य प्रत्यय होता है । दिवि भवे दिव्यं, प्राचि प्राग वा भवं प्राच्यं, अपाच्यं, उदीच्यं, प्रतीच्यम् । नियम २७१-- (ग्रामादीनञ् च ६।४।५) ग्राम शब्द से ईनञ् और य प्रत्यय होता है। ग्रामीणः, ग्राम्यः । नियम २७२- (नद्यादेरेयण ६।४।६) नदी आदि शब्दों से एयण प्रत्यय होता है । नद्यां जातो भवो वा नादेयः । माहेयः । वाराणसेयः, श्रावस्तेयः, कौशाम्बेयः, वानवासेयः आदि । . नियम २७३-(दक्षिणापश्चात्पुरसस्त्यण् . ६।४।१०) दक्षिणा;
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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