SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ वाक्यरचना बोध विधुरी। __ग-(प्रत्यन्ववात् सामलोम्नः ८।३।५८) प्रति, अनु, अव इनसे परे सामन् और लोमन् शब्द परे हो तो अ प्रत्यय हो जाता है। जैसे—प्रतिगतं साम प्रतिसामम् । प्रतिगतं सामास्य प्रतिसामं । अनुसामं, अनुसाम । अवसामं,. अवसाम । अनुलोमं अनुलोम । घ-(नपुंसकाद् वा ८।३।३२) अव्ययीभाव में 'ट' प्रत्यय विकल्प से होता है । जैसे—प्रतिकर्म, प्रतिकर्म । __ङ-(अक्ष्णोऽप्राण्यङ्गे ८।३।५६) अक्षि शब्द से अ प्रत्यय हो जाता है । वह अक्षि शब्द प्राणि का अंगबोधक नहीं होना चाहिए। जैसे-लवणस्य अक्षि == लवणाक्षि । लवणं अक्षि इव :-- लवणाक्षम् । पुष्कराक्षं, गवाक्षम् ।। च-(कटात् ८।३।६०) कट शब्द के आगे अक्षि शब्द प्राणि का अंगबोधक हो तो समास के अंत में अ प्रत्यय हो जाता है । जैसे-कटस्य अक्षि == कटाक्षः। छ-(ब्रह्म-हस्ति-राज-पल्याद् वर्चसः ८।३।६१) ब्रह्मन्, हस्तिन्, राजन् और पल्य शब्द से आगे वर्चस् शब्द अन्त में हो तो अप्रत्यय हो जाता है। जैसे—ब्रह्मणो वर्चः–ब्रह्मवर्चसं (ब्राह्मण का तेज, बल) राजवर्चसं, पल्यवर्चसं। नियम २१८-(अन्धसमवात् तमसः ८।३।६२) अंध, सम्, अव इनसे परे तमस् शब्द हो तो अप्रत्यय हो जाता है। जैसे-अंधं च तत् तमश्च= अन्धतमसम् । अंधं तमोऽस्मिन्निति अंधतमसं (अन्धा करने वाला अन्धकार), अन्धश्च तमश्चेति = अन्धतम, अन्धतमसे । संततं तमः, संततं तमसा, संततं तमोऽस्मिन्निति वा संतमसम् । अवहीनं तमो, अवहीनं तमसा, अवहीनं तमोऽस्मिन्निति वा अवतमसम् । नियम २१६-(अन्ववतप्ताद् रहसः ८।३।६३) अनु, अव, तप्त इनसे पर रहस् शब्द से 'अ' प्रत्यय हो जाता है। जैसे—अनुगतं रहः-- अनुरहसम्, अनुगता रहसा—अनुरहसम्, अनुगतं रहः अस्येति अनुरहसः । अवरहस, अवररहसः । तप्तं तप्ताय इवानधिगम्यं रहः तप्तरहसं, तप्तं रहोऽस्येति तप्तरहसः । नियम २२०-(प्रतेरुरसः सप्तम्या: ८।३।६४) सप्तमी अर्थ में प्रति अव्यय आता है। प्रति से परे 'उरस्' शब्द हो तो समास में 'अ' प्रत्यय हो जाता है । जैसे- उरसि वर्तते - प्रत्युरसम् (अव्ययी) उरसि प्रतिष्ठितम् -: प्रत्युरसम् (तत्पुरुष) । यहां 'निरादयो गताद्यर्थे पञ्चम्या' सूत्र से समास हुआ नियम २२१- (उपसर्गादध्वनः ८।३।६५) उपसर्ग (प्र आदि) से आगे यदि अध्वन् शब्द हो तो उससे समास में 'क' प्रत्यय हो जाता है। जैसेप्रगतः अध्वानं -प्राध्वम् (तत्पुरुष) । उपक्रान्तं अध्वानं-उपाध्वम् ।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy