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________________ ‘शतृ और शान प्रत्यय जगत् शब्द की तरह चलेंगे । स्त्रीलिंग में ईप् प्रत्यय आएगा । उसके रूप नदी के समान चलेंगे। स्त्रीलिंग में रूप बनाने के लिए (अब्यनः १।४।६२) सूत्र को ध्यान में रखें। उससे भ्वादिगण और दिबादिगण की धातुओं से नुम् (न्) नित्य होता है। पचन्ती, दीव्यन्ती। नियम १५८-- (अवर्णादनः शतुर्वेपोः १।४।६१) ना प्रत्यय को छोडकर अन्य गणों की अकारान्त धातुओं से नुम् (न्) विकल्प से होता है । तुदंती तुदती । यान्ती, याती । शेष गणों की धातुओं में इ लगेगा। रुदती, दधती, कुर्वती, शृण्वती। नियम १५६-(इधारिभ्यामकृच्छ्रे शतः ॥३॥६) अकृच्छ् (सुखसाध्य) अर्थ में इङ्, धारि धातु से वर्तमान अर्थ में शत प्रत्यय होता है। अधीयन् द्रुमपुष्पीयम् । धारयन् आचाराङ्गम् । नियम १६०-(सुद्विषाहः सत्रिशत्रुस्तुत्ये ५।३।१०) सुन् धातु से सत्रि (यज्ञ कर्ता या यज्ञ का निरीक्षण करने वाला) अर्थ में, द्विष् से शत्रु अर्थ में, अर्ह, से स्तुति अर्थ में वर्तमान काल में शतृ प्रत्यय होता है। सर्वे सुन्वन्तः (यज्ञस्वामिनः इत्यर्थः) । चौरस्य चौरं वा द्विषन् (शत्रुरित्यर्थः) । पूजामहन् (प्रशस्य इत्यर्थः) । शान-शान प्रत्यय के रूप बनाने का सरल तरीका यह है-तिबादि विभक्ति के 'ते' प्रत्यय का जो रूप बनता है वहां से ते को हटाकर 'मान' बिठा दें। जहां मुक् न हो वहां आन जोड़ दें। नियम १६१--.(मुगानेत: ५।३।११) धातु के रूप अकारान्त होने पर आन प्रत्यय को मुक् का आगम होता है। पवमानः, उद्वहमानः, विद्यमानः, करिष्यमाणः । नियम १६२-(पूयजोरानश् ५।३७) पूङ, यज् धातुओं से वर्तमान अर्थ में आनश् प्रत्यय होता है । पवमानः यजमानः । नियम १६३- (आसीनः ५।३।१२) आस् धातु से परे आन के आ को ई आदेश होता है । आसीनः, उदासीनः, उपासीनः, अध्यासीनः । नियम १६४-- (शक्तिवयस्ताच्छील्ये ५।३।८) शक्ति (सामर्थ्य), वयः (बाल आदि अवस्था), ताच्छील्य (तत्स्वभावता) ये अर्थ गम्यमान हो तो धातु से वर्तमान अर्थ में आनश् प्रत्यय होता है । कति इह हस्तिनं निघ्नानाः । कति इह स्त्रियःगच्छमानाः । कति इह आत्मानं वर्ण्यमानाः, परान्निदमानाः । प्रयोगवाक्य छात्र: पाठं घोषयन् न खलु इतस्ततो विलोकते । को विदधानो भूधन‘मरसं प्रभवति रोद्धम् जरसम् ? अनेकान् अवनिरुहान् बिभ्रद् एव उद्यानं रमणीयं भवति । परमात्मानं ध्यायन्तं मुनि मस्तकन्यस्तपाणि जनो वन्दते ।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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