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________________ पूर्वकालिकक्रिया ( क्त्वाप्रत्यय ) ६३ ( मार कर ) । प्रमत्य ( विचार कर ) । प्रवत्य ( याचना कर ), प्रतत्य ( फैला कर), प्रसत्य ( देकर ) । नियम १५७ - ( मो वा ४ | ३ | ४३ ) यम् रम् नम्, गम् धातुओं के अंत का लोप विकल्प से होता है यप् प्रत्यय परे होने पर । नियत्य, नियम्य ( नियमन कर ) । विरत्य, विरम्य ( विराम कर ) । प्रणत्य, प्रणम्य नमन कर) । आगत्य, आगम्य ( आकर ) । प्रयोगवाक्य अवनिपतिः प्रत्यर्थिनो जित्वा स्वदेशं प्रत्यागमत् । तत्त्वं बुद्ध्वापि यो मुह्यति स एव सर्वतो महीयान् मूढः । कोपं हित्वा य: शान्तिमाधत्ते स एव दुःखमुज्झित्वा सुखमश्नुते । अहं आचार्यवरं वन्दित्वा आगतोऽस्मि । पयः पीत्वा तत्कालं जलं न पेयम् । त्वं अर्हत्पदपूजनं कृत्वा, यतिजनं नत्वा, आगमं विदित्वा अधर्मकर्मठधियां संगं हित्वा, पात्रेषु धनं दत्वा, उत्तमक्रमजुषां पद्धति गत्वा, अन्तरारिव्रजं जित्वा पञ्चनमस्त्रियां स्मृत्वा इष्टं सुखं करक्रोडस्थं कुरु । अग्निः सर्वं दहति । वस्त्राणि कोऽदहत् । सीमा काष्ठानि न धक्ष्यति । संस्कृत में अनुवाद करो मोहन फूलों को चुनकर घर गया । राम ने वहाँ जाकर देखा तो उसे वह चीज नहीं मिली । तुम आशा लेकर वहाँ गये थे किंतु निराश क्यों लौटे ? सोहन पढकर चिकित्सक बनेगा | आचार्य श्री का प्रवचन सुनकर सभी प्रसन्न हो गये । दिनेश पत्र लिखकर सो गया । सतीश को छोड़कर सभी यहाँ आये थे । सास के कठोर स्वभाव को जानकर गुलाब डर गई । अच्छी बातें कहकर सुमति ने सबका मन मोह लिया । राजेन्द्र बगीचे में टहल कर कब आयेगा ? चोर को मार कर राजा खुश हुआ । दूध पीकर बसंत कहाँ गया कलिंग को जीतकर भी अशोक का मन प्रसन्न नहीं हुआ । आचार्य श्री को वंदन कर साध्वियां बैठ गई । फूल सूंघकर बालक कहाँ गया ? सत्य को जानकर स्वीकार करो । पिता से डरकर रमेश पढने बैठ गया । तीर्थंकरों की स्तुति कर राजा प्रसन्न हुआ । गायों को दुहकर ग्वाला घर गया । सेठ का धन चुराकर चोर भाग गया। दूसरों का कार्य करके जिनेश खुश हुआ । उसके कपड़े कैसे जले ? उसका शरीर कैसे जला ? अभ्यास १. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करो यात्वा, शयित्वा बुद्ध्वा मत्वा श्रुत्वा पृष्ट्वा, कृत्वा, नष्ट्वा, हत्वा । २. क्त्वा और यप् प्रत्यय कहाँ-कहाँ होता है ? ३. क्त्वा प्रत्यय परे होने पर किन-किन धातुओं को गुण होता है ? ४. किम् शब्द के रूप लिखो । ५. णम धातु के रूप लिखो ।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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