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________________ वाक्यरचना बोध रहेगा । कई सर्वनाम होंगे तो अन्तिम शेष रहेगा । जैसे-स रामश्च =तो। ढ-बहुवचन से दो से अधिक का बोध होता है लेकिन संस्कृत में कुछ शब्द ऐसे हैं जो रूप में तो बहुवचन हैं परन्तु उनका भाव एकवचन का ही रहता है। जैसे-दाराः, आपः, वर्षाः, सिकता:, सुमनसः, अक्षताः, लाजाः, असवः, प्राणाः; अप्सरसः, समाः। (अप्सरस्, वर्षा, समा सुमनस् इनका कहींकहीं एकवचन में भी प्रयोग मिलता है।) - ण-(गुरावेकस्मिश्च १११६६७) पूज्य के अर्थ में एकवचन और द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का भी प्रयोग होता है। जैसे - एष मे पिता, एते मे पितरः । अयं तपस्वी, इमे तपस्विनः । गुरुशिष्यो, गुरुशिष्याः। त-जातिवाची नाम में एकवचन और बहुवचन होता है । जैसेक्षत्रियो वीरः, क्षत्रिया: वीराः । थ-(अस्मदो द्वयोश्च १।१।६५) अस्मद् शब्द के एकवचन और द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का भी प्रयोग होता है। अहं ब्रवीमि, वयं ब्रूमः । आवां ब्रूवः, वयं ब्रूमः । अहं पण्डितो ब्रवीमि (मैं पण्डित कहता हूं), वयं पण्डिताः ब्रूमः। द-देशों के नाम संस्कृत भाषा में सदा बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। जैसे-अहं गतः कदाचिद् कलिङ्गान्-मैं कभी कलिंग गया था। ध-जब देश के नाम के साथ 'देश' या विषय शब्द जुडे हों तब एकवचन में प्रयोग करना चाहिए। जैसे-अस्ति मगधदेशे पाटलिपुत्रं नाम नगरम्-मगधदेश में पाटलिपुत्र नाम का एक नगर है। न-व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के बहुवचन प्रयोग से वंश या जाति का बोध होता है । जैसे—रघूणामन्वयं वक्ष्ये-मैं रघुवंशियों का वर्णन करूंगा। जनकानां रघूणां च सम्बन्धः कस्य न प्रिय:-जनक और रघुवंश वालों का सम्बन्ध किसको प्रिय नहीं है। प-पात्र, आस्पद, स्थान, पद, प्रमाण, भाजन आदि शब्द जब विधेय के रूप में प्रयुक्त होते हैं तब ये सदा एकवचन नपुंसकलिंग में रहते हैं। चाहे कर्ता किसी भी वचन और लिंग में हो, क्रिया सदा कर्ता के अनुकूल होती है। उद्देश्य के रूप में होंगे तो अन्य बचन भी होंगे। जैसे—गुणाः पूजास्थानं गुणिषु-गुणियों में गुण ही पूजा के स्थान हैं। ___ संस्कृत में अनुवाद करो राम, तुम और मैं कल साथ में भोजन करेंगे। मोहन और मैं कल बाजार गये थे। मैं और तुम संस्कृत पढेंगे। सीता और तुम इस पुस्तक को पढो। मोहजीत और मुनिसुव्रत भजन गायेंगे। मोहन, सोहन और निर्मल कलकत्ता कब जायेंगे । तुम और हम सब ध्यान करेंगे। राम या तुम शीघ्र घर जाओ । आचार्यश्री प्रवचन करते हैं। भगवन् ! तेरा स्मरण करना किसको
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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