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________________ यरिसमलमवाडिपटसअवहेरियखलाया सुपामहवा दिवहिंपराइनुपर्याय मदाहरपथगारावडजमदहणखाण तरकस मराजयसमारे मायंदगोळी गादलियकोरेगावकिवीस मर्श जाम तदिविमिरियस पक्षतामपणवेणितेर्दिनुपमा साखडगा लियपावावलेवा परिसमिरता मखरामशर्मत किकिरणिवाहिणिझण्व ते करिसबहिरियदिनक्कचाके पश्सर हिदकिंपुखरक्षिसालातसुणविसपश्चहि। बागपवनमा रणबीनतीक अभिमानमेरु, अभिमान-चिन्ह एवं काव्य-पिशाच जैसे विरुदधारी तथा सरस्वती को भी चुनौती देने वाले महान् स्वाभिमानी अपभ्रंश महाकवि पुष्पदन्त किसी बात पर अपमान का अनुभव कर चुपचाप अपने नरेश का राज्य छोड़कर एक निर्जन वन में पहुंचे तथा वहाँ एक वृक्ष के नीचे जब विश्राम कर रहे थे, तभी सहसा राष्ट्रकूट-नरेश के महामन्त्री भरत नन्न के साथ वहाँ पहुँचते हैं और उनके निर्जन वन में अकेले ही भटकने का कारण पूछते हैं, तो वे अपने उत्तर में कह रहे हैं - पहाड़ की गुफा में रहकर घास-फूस खाकर जीवन-यापन कर लेना अच्छा, किन्तु अविवेकी तथा टेढ़ी-मेढ़ी भौहों को देखते-सहते हुए किसी का सुस्वाद भोजन करना उपयुक्त नहीं। महाकवि पुष्पदन्त कृत अपभ्रंश आदिपुराण (महापुराणान्तर्गत) की प्रशस्ति से-प्रो. डॉ. कमलचन्द जी सोगानी, जयपुर के सौजन्य से प्राप्त ।
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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