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________________ जयदु सुद देवदा श्रमण परम्परा में जिनवाणी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। रत्नत्रय – आराधना का मूल आधार श्रुतदेवता की आराधना करना है। दर्शन और ज्ञान आत्मा के अभिन्न गुण हैं। ज्ञान की आराधना का एक आधार शब्द-शिक्षा भी है। शब्दों की सुरक्षा से अर्थ सुरक्षित होते रहते हैं। शब्दों की साज-संवार ने ही पाण्डुलिपि-लेखन और संरक्षण को बल दिया है। एक प्रकार से पाण्डुलिपि का लेखन, संरक्षण, सम्पादन, अनुवाद आदि श्रुतकार्य जिनवाणी की सेवा के कार्य ही हैं। अतः पाण्डुलिपिविज्ञान को समझना और समझाना जिनवाणी का ही प्रचार है, श्रुतदेवी की आराधना है। देव-शास्त्र और गुरू इस त्रिवेणी में शास्त्र के जुड़ने से पाण्डुलिपि का ज्ञान-विज्ञान स्वयमेव जिनवाणी का अंग बन गया है। जिनवाणी की सेवा में तन्मयता और पुरूषार्थपूर्वक सुदीर्घ काल से संलग्न प्रो. डा. राजाराम जैन ने "जैन पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख" विषय पर जो व्याख्यान दिये हैं, वे उनके द्वारा की गयी श्रुतसेवा के दस्तावेज हैं। उन्होंने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की अमूल्य धरोहर के रूप में पाण्डुलिपियों और शिलालेखों के इतिहास को रोचक शैली में प्रस्तुत किया सिद्धान्ताचार्य पंण्डित फूलचन्द्र शास्त्री फाउंडेशन, रूड़की एवं श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, वाराणसी द्वारा प्रकाशित होने वाली प्रो. डा. राजाराम जैन की यह पुस्तक "जैन पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख-एक परिशीलन" भारत की प्राचीन पाण्डुलिपियों के संरक्षण, सम्पादन एवं प्रकाशन के क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों के लिए ज्ञानवर्द्धक एवं प्रेरणास्पद है। इससे प्राकृत के प्राचीन शिलालेखों के महत्त्व पर भी प्रकाश पड़ता है। नई पीढ़ी के विद्वान पाण्डुलिपि-सम्पादन के कार्य को प्रमुखता देकर इसमें जुटें तो देश की सांस्कृतिक विरासत प्रकाश में आ सकेगी और विद्वानों का ज्ञान भी बहु आयामी बनेगा। इस पुस्तक द्वारा प्रो. डा. राजाराम जैन ने और इसकी प्रकाशक संस्था ने जैनविद्या के अध्ययन को निस्सन्देह ही एक नयी दिशा दी है। अतः दोनों ही बधाई के पात्र हैं। इन्हें मंगल साधुवाद। १० जून, २००७, श्रुतपंचमी स्वस्ति चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी श्रवणबेलगोला
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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