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________________ तिहारको यउपहरा जोगय मे को सुरतम पाउबार सारसुबास मरणया लहीतामुनिनादास (अविहिकरलमा मोलु सुप्रती दस दिसावयवेद सायविविलीयन जिरासा सरकार स्थपतिर बगर पालिक नियमहर पतनामिण 5 दिसामा कोडीलामा ममकामा मुस्केमंकरु मुस्कर बकरु वि मियर साडि विमेदिरहमणिमगु होला. मायड मम लक लाम मुक्तासुररुक्तादिलक्ष्य यासिर ससिकलाल एमाल -परियारकें सबलुपथ के जातिरिय आमधराधरु जातिजयल माम्बेमको दादको माईगुलामागुराई आसिमित तोहमतीबिर की म मेमहि पारिसिह मेहेमनरूपरि यदि सिरि सहरिएः प्रायर लियसिधगतं भविषादिविनला याRAT मिनिया जी से पुराने एवं सरिया सायं सहेजी एथे। जब उस H समय मंड हम गयदयं के ममि साहो मध m महाम कमरेला संयम ४५१ वर्षे ग्रामसमेत मन बाइकर्मार्थमपी रमजीर्वमनिकरेअ क्रसर htgma AKA PAR आदिपुराण (नजीबाबाद प्रति) प्रथम एंव अन्तिम पत्र बाबू जगतप्रसाद जी जैन (डालमियानगर, नजीबाबाद) के सौजन्य से प्राप्त । वस्तुतः यह ग्रन्थ महाकवि रइधू द्वारा लिखित मेहेसचरिउ है, किन्तु किसी प्रतिलिपिकार ने इसे सिंहसेन द्वारा लिखित आदिपुराण बताया है।
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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