SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन - पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख २. केन्द्रिय समिति एक ऐसा धौव्य फण्ड तैयार करे, जिससे यत्र-तत्र अव्यवस्थित रूप में पड़ी हुई पाण्डुलिपियों का योग्य विशेषज्ञों द्वारा सूचीकरण एवं मूल्यांकन कराया जा सके। ३. το यदि आवश्यक हो तो केन्द्रिय समिति द्वारा आर्थिक दृष्टि से विपन्न किन्तु महत्वपूर्ण दो-तीन समीपवर्ती शास्त्रभण्डारों को मिलाकर एक सुविधा सम्पन्न स्थान पर स्थापित कर दिया जाए तथा उसे अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरण जैसे एक्सहास्ट पंखे, फायरप्रूफ अल्मारियाँ, पाण्डुलिपियों के कागजों का स्थायीकरण तथा कमरों को वातानुकूलित रखने के उपकरण आदि प्रदान कराए। ४. अभी तक यह देखा गया है कि जो भी सूचीपत्र तैयार किए गए हैं, उनमें पाण्डुलिपियों के विवरण प्रस्तुत करने की पद्धति में एकरूपता नहीं है, कहीं-कहीं उनका मूल्यांकन भी वैज्ञानिक-पद्धति से नहीं हो पाया है। इससे शोधार्थियों को उनका पूरा लाभ नहीं मिल पाता । अतः एक निश्चित योजना के अन्तर्गत प्राथमिकता के आधार पर पाण्डुलिपियों का विषय-वर्गीकरण तथा मूल्यांकन कर उनके विधिवत् प्रकाशन की व्यवस्था कराई जाए । ५. पाण्डुलिपियों की सुरक्षा के लिए वर्तमान की अस्त-व्यस्त परिस्थितियों, तथा उनसे भविष्य में कुछ अनिष्टों की परिकल्पना करते हुए यह अनिवार्य सा हो गया है कि समाज अधिक से अधिक जागरूक बने तथा स्वायत्तता एवं एकाधिकारी बने रहने की संकीर्ण मनोवृत्ति से ऊपर उठकर जिनवाणी के हित में उसकी ऐसी व्यवस्था करें कि अभी जितनी भी पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं, उनमें से प्राथमिकता के आधार पर सभी की माइक्रोफिल्मिंग कराकर देश के हर प्रमुख शास्त्र भण्डार में उनकी १- १ प्रति सुरक्षित करा दी जायें, जिससे कि किसी एक स्थान की पाण्डुलिपि के गुम हो जाने अथवा नष्ट-भ्रष्ट होने पर वह दूसरे शास्त्र भण्डार से उपलब्ध हो सके, जैसा कि मध्यकाल में कर्नाटक की यशस्विनी महिला अत्तिमव्वे ने तथा षट्खण्डागम की धवला आदि टीकाओं के नागरी लिप्यन्तरण को उनके प्रकाशन के पूर्व देश के प्रमुख प्राच्य शास्त्रागारों में सुरक्षा की दृष्टि से भेज दिया गया था । ६. केन्द्रिय समिति यह प्रयत्न करे कि विश्वविद्यालयों में संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में या तो पाठ-सम्पादन और पाठालोचन सम्बन्धी स्नातकोत्तर विभागों की स्थापना करावे अथवा उनमें फिलहाल २००-२०० अंकों का एक ग्रूप ऐसा रहे, जिसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल एवं हिन्दी की जैन पाण्डुलिपियों के अध्ययन एवं पाठालोचन के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था रहे। ऐसे छात्रों को छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी की जाये । सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं के उत्साहवर्धन के लिए केन्द्रिय समिति स्वर्णपदक प्रदान करने की भी व्यवस्था करें। I ७. यदि कोई छात्र-छात्रा किसी पाण्डुलिपि का एम. ए. स्तर का लघु शोध प्रबन्ध (Dissertation) तैयार करना चाहे तो उसके लिए विशेष शोध छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जाए। जो छात्र-छात्रा पी.एच.डी. एवं डी. लिट् स्तर की उपाधि के लिए किसी विश्व विद्यालय
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy