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________________ अर्थ- मनुष्य को विद्या यश देने वाली है, विद्या हमेशा श्रेयसकारी अर्थात् कल्याणकारी है, सम्यक् प्रकार से आराधित विद्या विद्यार्थी की उसी प्रकार रक्षा करती है जिस प्रकार माता अपने प्रिय पुत्र की रक्षा करती है। गुरुसेवाहि जा विज्जा, णाणीणं संगमेण वा। अब्भासेण हि भावेण, चउत्थेणं ण पप्पदे ॥4॥ अन्वयार्थ-(गुरुसेवाहि जा विज्जा) यह विद्या गुरु सेवा से (णाणीणं संगमेण) ज्ञानियों की संगति करने से (वा) अथवा (अब्भासेण भावेण) भावपूर्वक अभ्यास से (पप्पदे) प्राप्त होती है [अन्य किसी] (चउत्थेणं ण) चौथे उपाय से प्राप्त नहीं होती है। अर्थ-यह विद्या गुरु सेवा से, ज्ञानीजनों की संगति करने से अथवा भावपूर्वक अभ्यास करने से प्राप्त होती है, अन्य किसी चौथे उपाय से प्राप्त नहीं होती है। विज्जा य विज्जमाणेमा, दाणेण हि विवड्ढदि। चोरादिहि हरेजा ण, पुच्छीअदि मणीसिहिं॥5॥ अन्वयार्थ-(इमा विज्जमाण विज्जा) यह विद्यमान विद्या (हि) वस्तुतः (दाणेण विवड्ढदि) दान से ही बढ़ती है (चोरादिहि हरेज्जा ण) चोर आदि के द्वारा हरी नहीं जाती (मणीसीहिं) बुद्धिमानों के द्वारा (पुच्छीअदि) पूछी जाती है। ___ अर्थ-यह विद्यमान विद्या वस्तुतः दान से ही बढ़ती है, चोर आदि के द्वारा हरी नहीं जाती किन्तु बुद्धिमानों के द्वारा पूछी जाती है। रूव-जोव्वण-संपण्णा, विसालकुल-संभवा। विज्जाहीणा ण सोहंते, णिग्गंधा इव किंसुगा॥6॥ अन्वयार्थ-(रूव-जोव्वण संपण्णा) रूप-यौवन संपन्न [और] (विसाल कुल संभवा) विशाल कुल में उत्पन्न मनुष्य भी (विज्जाहीणा ण सोहंते) विद्याहीन शोभित नहीं होते (णिग्गंधा किंसुगा इव) जैसे सुंदर वर्ण वाला किन्तु गंधरहित किंसुक (ढाक) का फूल। अर्थ-रूप-यौवन सम्पन्न और विशाल कुल में उत्पन्न मनुष्य भी विद्याहीन शोभित नहीं होते जैसे कि सुंदर वर्णवाला किन्तु गंधरहित कंसुक (पलास) का फूल। गेहे धाराहिरूढा वि, सहाए णो पवट्टदे। ताए विज्जाए किं कज्जं, आयारे वा ण वट्टदे॥7॥ अन्वयार्थ-(गेहे धाराहिरूढा वि) घर में धाराभिरूढ़ होने पर भी (सहाए णो पवट्टदे) यदि सभा में प्रवर्तित नहीं होती है (वा आयारे ण वट्टदे) अथवा आचरण में प्रवर्तन नहीं करती है [तो] (ताए विज्जाए किं कज्जं) उस विद्या से क्या काम? विज्जा-त्थुदी :: 95
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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