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________________ को पूरी तरह छोड़कर धर्मोपदेश देने वाले और सन्मार्ग दिखाने वाले उन धर्मनाथ जिनेन्द्र को धर्म की प्राप्ति के लिए मैं नमन करता हूँ। भडं सुसेटं सिवसाहणत्थं, कामादि-हंतं दुहणासणत्थं। णिवाहिवं मयणं तित्थणाहं, णिच्चं णमामि सिरि-संतिणाहं॥16॥ अन्वयार्थ-(सिवसाहणत्थं) शिव-साधन के लिए (य) और (दुहणासणत्थं) दुःख नष्ट करने के लिए (कामादि हंतं) कामादि दुर्भावों को नष्ट करने वाले (सुसेठं भडं) उद्भट भट (णिवाहिवं मयणं तित्थणाह) चक्रवर्ती, कामदेव, तीर्थंकर [इन पुण्य पदों से युक्त] (सिरि संतिणाहं) श्री शांतिनाथ को [ मैं] (णिच्चं) नित्य (णमामि) नमन करता हूँ। ___अर्थ-शिव-साधन के लिए और दुःख नष्ट करने के लिए कामादि दुर्भावों को नष्ट करने वाले उद्भट भट अर्थात् महाशक्तिशाली, चक्रवर्ती, कामदेव तथा तीर्थंकर इन पुण्य पदों से युक्त श्री शांतिनाथ भगवान को मैं नित्य नमन करता हूँ। पसंसिदो तोसदि णो हरिस्सं, विराहिदो जो ण करेदि रोसं। संपुण्ण-सीलाणि गुणाणि पत्तं, वंदामि णिच्चं सिरि-कुंथुणाहं॥17॥ अन्वयार्थ-(जो) जो (पसंसिदो) प्रशंसा करने पर (तोसदि णो हरिस्सं) न तुष्ट होते हैं न हर्षित [तथा] (विराहिदो) विराधना करने पर (रोसंण करेदि) रोष नहीं करते हैं [ऐसे] (संपुण्ण सीलाणि गुणाणि पत्तं) सम्पूर्ण शीलों और गुणों को प्राप्त (सिरि-कुंथुणाहं) श्री कुंथुनाथ को [मैं] (णिच्चं) नित्य (वंदामि) वन्दन करता हूँ। अर्थ-जो प्रशंसा करने पर न तुष्ट होते हैं न हर्षित तथा विराधना करने पर रोष नहीं करते हैं, ऐसे सम्पूर्ण शीलों और गुणों को प्राप्त श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्र को मैं नित्य वन्दन करता हूँ। जो चक्कवट्टी भुवि सत्तमो य, सप्पुण्ण-जुत्तो मयरद्धजो य। अट्ठारसो तित्थयरो सुदेवो, वंदामि तं हं अरहं जिणिंदं॥18॥ अन्वयार्थ-(जो) जो (भुवि) जग में (सत्तमो) सातवें (चक्कवट्टी) चक्रवर्ती हैं (सप्पुण्ण-जुत्तो मयरद्धजो) सत्पुण्य युक्त मकरध्वज हैं (य) और (अट्ठारसो तित्थयरो) अठारहवें तीर्थंकर हैं (तं) उन (सुदेवं) सच्चे देव (अरहं जिणिंदं) अरहनाथ जिनेन्द्र को (हं) मैं (वंदामि) वन्दन करता हूँ। अर्थ-जो जग में सातवें चक्रवर्ती हैं, सत्पुण्य युक्त मकरध्वज अर्थात् कामदेव हैं और अठारहवें तीर्थंकर हैं, उन तीन पदों को प्राप्त सच्चे देव अरहनाथ जिनेन्द्र को मैं वन्दन करता हूँ। चउवीस-तित्थयर-त्थुदी :: 67
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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