SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिणिंद-त्थुदी (जिनेन्द्र-स्तुति, उपजाति-छन्द) चक्कीहि इंदेहि य पूणिज, धणोरगिंदेहि य अच्चणिज्ज। अणंत-जीवाण कल्लाण-कत्तं, सुमग्गदायं अरहं णमामि॥1॥ अन्वयार्थ-(चक्कीहि इंदेहि य पूयणिज्जं) चक्रवर्ती व इन्द्रों द्वारा पूज्यनीय (धणोरगिंदेहि य अच्चणिजं) धनेन्द्र व नागेन्द्रों से अय॑नीय (अणंत जीवाण कल्लाण कत्तं) अनंत जीवों का कल्याण करने वाले [तथा] (सुमग्गदाय) सुमार्ग देने वाले (अरहं णमामि) अरहंत भगवान को [मैं] नमन करता हूँ। अर्थ-चक्रवर्ती व देवेन्द्रों द्वारा पूज्यनीय, धनेन्द्र (कुबेर) व नागेन्द्रों से अर्च्यनीय, अनंत जीवों का कल्याण करने वाले तथा सुमार्ग दिखाने वाले अरहंत भगवान को मैं नमन करता हूँ। दोसादु रित्तं पडिहेर-जुत्तं, अणंत-णाणग्ग-गुणादि-पत्तं। जम्मस्स मिच्चुस्स विणासणठें, जिणिंददेवं पणमामि णिच्चं ॥2॥ अन्वयार्थ-(दोसादु रित्तं) दोषों से रहित (पडिहेर-जुत्तं) प्रातिहार्य युक्त (अणंत णाणग्ग गुणादि पत्तं) अग्रणीय अनंत ज्ञान आदि गुणों को प्राप्त (जिणिंददेवं) जिनेन्द्र भगवान को (जम्मस्स मिच्चुस्स विणासणटुं) जन्म-मृत्यु के विनाश के लिए [मैं] (णिच्चं पणमामि) नित्य नमन करता हूँ। अर्थ-अठारह दोषों से रहित, आठ प्रातिहार्य युक्त तथा अग्रणीय अनंतज्ञानादि गुणों को प्राप्त जिनेन्द्र देव को जन्म और मृत्यु के विनाश के लिए मैं नित्य नमन करता हूँ। विग्घा पणस्संति भया ण जंति, णो छुद्ददेवा परिपीडयंति। अत्थं जहेच्छं च णरा लहंते, णस्संति पावा जिणदंसणेणं॥3॥ अन्वयार्थ-(जिणदंसणेण) जिनेन्द्र दर्शन से (विग्घा पणस्संति) विघ्न नष्ट हो जाते हैं(भया ण जंति) भय नहीं आते हैं (णो छुद्ददेवा परिपीडयंति) न क्षुद्रदेव परेशान करते हैं (अत्थं जहेच्छं च णरा लहंते) मनुष्य यथेष्ट धन को पाते हैं (च) और (णस्संति पावा) पाप नष्ट हो जाते हैं। जिणिंद-त्थुदी :: 59
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy