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________________ युक्त हैं (णियसिस्सवग्गं) अपने शिष्य वर्ग को (सत्थं ) शास्त्र ( सिक्खेदि ) सिखाते हैं, (दिक्खादिदाणे) दीक्षादि देने में (कुसलं मुणिंदं) कुशल मुनीन्द्र हैं (कप्पादि-णिट्ठ) आचेलक्य आदि कल्पों में निष्ठ हैं [ उन] ( सूरिं) आचार्य को [मैं] (पणमामि) प्रणाम करता हूँ । अर्थ - जो ज्ञान आदि पाँच आचारों में अच्छी तरह से युक्त हैं, अपने शिष्यवर्ग को शास्त्र सिखाते हैं, दीक्षादि देने में कुशल मुनीन्द्र हैं तथा आचेलक्य आदि कल्पों में निष्ठ हैं, उन आचार्य को मैं प्रणाम करता हूँ । आयार - सुत्ते य ठाणादिअंगे, उप्पाद-पुव्वंगइच्चादि सत्थे । जुत्तं सयं जुजदि साहुवग्गं, णमामि सम्मं उवज्झाय - साहुं ॥4॥ अन्वयार्थ – [ जो] (आयार - सुत्ते) आचारांग सूत्र (ठाणादि - अंगे) स्थानांग सूत्र आदि अंग साहित्य (च) और ( उप्पाद - पुव्वंग इच्चादि सत्थे ) उत्पाद आदि पूर्वगत साहित्य के शास्त्रों में (सयं) स्वयं (जुत्तं) युक्त हैं और (साहुवग्गं) साधुवर्ग को भी उनके अध्ययन में (जुंजदि) लगाते हैं [ उन] ( उवज्झाय- साहुं) उपाध्याय साधु को [मैं] (सम्मं) सम्यक् रूप से (णमामि ) नमन करता हूँ । अर्थ – जो आचारांग सूत्र, स्थानांग सूत्र आदि अंग - साहित्य और उत्पाद आदि पूर्वगत साहित्य के शास्त्रों में स्वयं युक्त हैं तथा साधुवर्ग को भी उनके अध्ययन में लगाते हैं, उन उपाध्याय साधु को मैं सम्यक् रूप से नमन करता हूँ । आसा-कसाया विसयादु रित्तो, णाणे य झाणे समदाइ जुत्तो । सुलीण - रण्णत्तय- पालणत्थे, तं साहुवग्गं सददं णमामि ॥5॥ - अन्वयार्थ – [ जो ] (आसा - कसाया विसयादु) आशा - कषायों, विषयवासनाओं से (रित्तो) रहित हैं, ( णाणे) ज्ञान में (झाणे ) ध्यान में (समदाए) समता भाव में (जुत्तो) युक्त हैं, (य) और ( रण्णत्तयं) रत्नत्रय ( पालणत्थे ) पालन के प्रयोजन में (सुलीणो) अच्छी तरह से लीन हैं (तं) उन (साहूवग्गं) साधु - वर्ग को [मैं] (सददं) सदैव (णमामि ) नमन करता हूँ। अर्थ- जो आशा - कषायों, विषय-वासनाओं से रहित हैं, ज्ञान-ध्यान तथा समता भाव में स्थित हैं और रत्नत्रय पालन के प्रयोजन में अच्छी तरह से लीन हैं, उन साधु - वर्ग को मैं सदैव नमन करता हूँ । परमेट्ठि णमुक्कारं, तिजोगेण करेदि जो । णासेदि दुक्ख-संदोहं, सव्वं सोक्खं च पावदे ॥16 ॥ अन्वयार्थ – (जो ) जो ( तिजोगेण ) त्रियोगों से (परमेट्ठि णमुक्कारं ) पंच परमेट्ठित्थुदी :: 57
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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