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________________ अर्थ-जिनके समग्र जिन शासन को समग्र समीक्षित दृष्टि से देखकर अथवा सुनकर कोई विरोधी जन भी निश्चय कर शीघ्र ही खंडित मानश्रृंग अर्थात् मान रहित हो जाते हैं, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ। णाभेदमेत्तं ण च भेदमेत्तं, उत्तं पदत्थं तु अभेद-भेदं। णाणस्स सारं कहिदं हि जेण, णमामि तं हं सिरि-वड्ढमाणं॥7॥ अन्वयार्थ-(पदत्थं) पदार्थ (णाभेदमेत्तं) अभेद मात्र नहीं है (ण भेदमेत्तं) न भेद मात्र है (तु) अपितु (अभेद-भेदं) भेदा-भेदात्मक (उत्तं) कहा है (च) और (णाणस्स सारं) ज्ञान का सार (जेण) जिन्होंने (कहिदं) कहा है (तं) उन (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को (हं) मैं (णमामि) नमन करता हूँ। अर्थ-वस्तु भेद मात्र नहीं है और न अभेद मात्र है, अपितु वस्तु को जिन्होंने वस्तुतः भेदाभेदात्मक कहा है तथा ज्ञान का सार जिन्होंने कहा है, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ। जीवा समाणा जगदम्हि सव्वे, गुणेण सेट्ठा अगुणेण हीणा। धम्मो अहिंसा कहिदं हि जेण, णमामि तं हं सिरि-वड्ढमाणं ॥8॥ अन्वयार्थ-(जगदम्हि) जगत में (सव्वे जीवा) सभी जीव (समाणा) समान हैं [कोई भी जीव] (गुणेण सेट्ठा) गुणों से श्रेष्ठ होने पर श्रेष्ठ [तथा] (अगुणेण हीणा) अवगुणों से हीन होता है (धम्मो अहिंसा) अहिंसा धर्म है (जेण कहिदं) जिन्होंने कहा है (तं) उन (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को (हं) मैं (णमामि) नमन करता हूँ। अर्थ-जगत में सभी जीव समान हैं। कोई भी जीव गुणों से हीन होने पर हीन अथवा गुणों से श्रेष्ठ होने पर श्रेष्ठ होता है तथा परम अहिंसा धर्म जिन्होंने कहा है, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ। वड्ढमाण-त्थुदिं पिच्चं, जो पढदि सुणेदि वा। ईसरत्तं च पाऊण, सग्गं मोक्खं च पावदि॥१॥ अन्वयार्थ-(जो) जो मनुष्य (वड्ढमाणत्थुदि) वर्धमान-स्तुति को (पढेदि वा सुणेदि) पढ़ता अथवा सुनता है [वह] (ईसरत्तं च पाऊण) ऐश्वर्य पाकर (सग्गं) स्वर्ग (च) और (मोक्खं) मोक्ष को (पावदि) प्राप्त करता है। अर्थ-जो कोई मनुष्य तीर्थंकर वर्धमान महावीर की स्तुति को पढ़ता अथवा सुनता है, वह विविध सांसारिक ऐश्वर्य भोगकर क्रमश: स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त करता है। वड्ढमाण-त्थुदी :: 55
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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